The judgement seat of Vikramaditya in Hindi class 10|Up board

 

The judgement seat of Vikramaditya

Doston is post mein main aapko the judgement seat of Vikramaditya chapter joki UP Board class 10th English ka hai uska Hindi summary  yaha per de raha hun.

Asha Karta Hun ki aapko is lekh se madad milegi.


the judgement seat of Vikramaditya UP Board class 10th summary in Hindi


विक्रमादित्य उज्जैन के राजा थे और दोस्तों उन्हीं के साथ विक्रम संवत का भी शुरुआत हुआ| वह न्याय और ज्ञान को बहुत ज्यादा ही प्रसिद्ध थे और तो और राजा विक्रमादित्य को लोग उनके न्याय के लिए बहुत ही ज्यादा पसंद करते थे। उनकी दृष्टि से कभी भी कोई भी अपराधी बच नहीं सकता था। और एक बात यह भी है कि वह कभी भी निर्दोष को सजा नहीं सुनाई मतलब वह निर्दोष और अपराधी में फर्क करना बहुत ही अच्छे से जानते थे। अपने न्याय के कारण ही देश में विक्रमादित्य का नाम को लोग न्याय की पर्यायवाची समझने लगे थे। अर्थात विक्रमादित्य मतलब न्याय।

दोस्तों जब विक्रमादित्य जी का मृत्यु हो जाती है तो उसके बाद जो उनका किला था वह अब खंडहर बन चुका है और वहां पर अब कुछ नहीं था। वहां पर आसपास के गांव के लोग अपने पशुओं को चराने के लिए यहां पर ले आया करते हैं और अपने पशुओं को चराते थे। लेकिन एक दिन क्या होता है कि वहां पर एक बच्चे( चरवाहा/ shepherd boy) ने एक खेल के मैदान में देखा कि बीच में मिट्टी का हरा भरा एक टीला दिख रहा है और उसे ऐसा लगा मानो जैसे वह किसी न्यायकर्ता का न्याय सिंहासन हो।


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और दोस्तों वह जो लड़का था जो कि चरवाहा(shepherd boy) था उसने अपने बाकी मित्रों से कहा कि मैं अब न्यायकर्ता बनकर तुम सब के मामले समझाऊंगा। न्यायकर्ता को हम अंग्रेजी में जज(judge) बोलते हैं। तब बाकी बच्चे  जोकि चरवाहे के दोस्त ही थे उन सभी बच्चों ने इसे  खेल/नाटक के तौर पर लिया और अलग-अलग मामले लेकर शेफर्ड ब्वॉय यानी कि चरवाहा बच्चा जो कि सिंहासन पर बैठा हुआ था उसके पास लेकर आने लगे और जब वह बच्चा (चरवाहा) सिंहासन पर बैठता तब वह बहुत ही ज्यादा गंभीर हो जाता शांत हो जाता उसका व्यवहार जो है वह बदल जाता वह अजीब व्यवहार करने लगता और वह बहुत ही ज्यादा प्रभावपूर्ण हो जाता। और जब वह उस सिंहासन से जिसे अंग्रेजी में जजमेंट सीट ( judgement seat) बोलते हैं उससे जब वह उतरता तो वह अन्य लड़कों की तरह ही साधारण हो जाता उसका व्यवहार भी साधारण हो जाता।तो जब वह सिंहासन पर बैठा रहता तो बाकी बच्चों उससे भयभीत होते थे क्योंकि वह बहुत ही ज्यादा गंभीर हो जाता था और जो बच्चे हैं खेल खेल में जो अलग-अलग मामले उसके सामने लाते थे वह बच्चा उस सभी मामलों को बहुत ही अच्छे तरीके से गंभीरतापूर्वक निर्णय लेता था और धीरे-धीरे यह बात जो है पूरे गांव-गांव में फैल गई जिसकी वजह से बहुत सारे पुरुष स्त्री जो है अपने अपने मामले लेकर चरवाहे के पास आने लगे ताकि वह चरवाहा बच्चा उनके मामले का सही गंभीरतापूर्वक निर्णय दे सके क्योंकि उसका जो निर्णय था वह बहुत ही ज्यादा संतोषजनक था उस वजह से वहां पर अब दरबारे लगने लगी।


और दोस्तों यह बात जो है उज्जैन के राजा के पास पहुंच गई, वह जो उज्जैन से बहुत ही दूर रहा करते थे उनके पास यह बात पहुंच गई कि भाई कोई एक लड़का है जो कि चरवाहा है वह एक हरा-भरा टीले पर बैठकर लोगों की मामले को सुलझा रहा है और बहुत ही संतोषजनक समाधान लोगों को दे रहा है। और इस बात पर जो राजा थे उनका अनुमान लगा लिया कि वह  चरवाहा लड़का जरूर विक्रमादित्य की न्याय सिंहासन पर बैठा होगा।और फिर क्या दोस्तों जो राजा थे उन्होंने यह निर्णय लिया कि वह न्याय सिंहासन उस खेल के मैदान से निकलवा कर निकलवा कर अपने महल में लाएंगे जिससे राजा उस पर बैठकर अपने आप को एक न्यायप्रिय राजा बना सकेंगे और उनके आदेश के मुताबिक खेल के मैदान को पूरी तरीके से खोद दिया गया और खोजने के बाद वहां से सिंहासन को निकाला गया जो सिंहासन था वह काले संगमरमर का था और वह बहुत ही बड़ा था जिसे 25 देव दूतों ने अपने हाथ और पंखों से पकड़ रखा था।यह देखने में भी एकदम विक्रमादित्य के सिंहासन जैसा प्रतीत हो रहा था। यह सब देखकर जो बच्चा था जो कि उस सिंहासन पर बैठकर लोगों को समाधान देता था उसको यह देखकर बहुत ही ज्यादा कष्ट हुआ दुख हुआ उसे ऐसा लग रहा था मानो जैसे उससे उसकी कोई बहुत ही ज्यादा प्रिय चीज छीन ली गई हो।और फिर क्या होता है कि जो सिंहासन है उसे बहुत ही उल्लास के साथ जो है शहर में ले जाया जाता है और उसे जो है राजा के महल के न्याय कक्ष में रख दिया जाता है और फिर राजा अपनी प्रजा को यह आदेश करते हैं कि सब लोग हैं 3 दिन का उपवास करेंगे और प्रार्थना भी करेंगे और चौथे दिन राजा ने यह निर्णय ले लिया था कि वह चौथे दिन विक्रमादित्य के सिंहासन पर बैठेंगे।


और दोस्तों चौथे दिन क्या होता है जब राजा अपने न्यायाधीशों(judges) और पुजारियों के साथ आते हैं ताकि वह सिंहासन पर बैठ सके तब क्या होता है अचानक एक देवदूत निकलता है और राजा से पूछता है कि क्या राजा ने कभी भी किसी दूसरे राज्य पर कब्जा करने या राज करने की इच्छा नहीं की है तो इस बात पर राजा बोलते कि हां  मैंने तो की है, उनका जवाब हां में आता है और यह सुनकर देवदूत कहता है कि आपको 3 दिन तक उपवास रखना होगा और प्रार्थना करना होगा ताकि आप इस सिंहासन पर बैठने के योग्य बन सके और इतना कहने के बाद जो देवदूत है वह उड़ गया। फिर 3 दिन बाद जब राजा यह सोचते हैं कि अब तो मैं सिंहासन में बैठने योग्य हो गया हूं और जब वह सिंहासन में बैठने के लिए जाते हैं तभी दूसरा देवदूत निकलता है और फिर वह उनसे पूछता है कि क्या आपने कभी भी दूसरे की चीजों को अपना बनाने की कोशिश की है और इस पर राजा कहते कि हां हमने की है राजा ने इस बात को स्वीकार किया और और दोस्तों इस तरह जब भी राजा बैठने जाते तो उन 25 में से बार-बार एक देवदूत निकलता और राजा को सिंहासन पर बैठने से रोक देता और यह सिलसिला चलता रहा और अब आखरी देवदूत बचा था और इस पर राजा ने सोचा कि अब वह सिंहासन पर बैठने योग्य हो गया हूं और जब वह फिर से जाते हैं सिंहासन पर बैठने तो आखरी देवदूत आता है और फिर वह पूछता है राजा से कि क्या आपका ह्रदय एक छोटे से बच्चे की तरह पवित्र है और यह सुनने के बाद राजा ने कहा कि नहीं वह उस सिंहासन पर बैठने योग्य नहीं है मतलब कि उनका जो हृदय बच्चे की तरह पवित्र नहीं है और यह सुनकर वह जो आखरी देवदूत था उसने सिंहासन को लेकर अपने साथ आसमान में उड़ गया और दोस्तों इस तरह जो विक्रमादित्य का सिंहासन था वह धरती से हमेशा के लिए चला गया।


The judgement seat of Vikramaditya in Hindi




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